Integrity Score 400
No Records Found
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Nice video, great message... Keep it up 👍
एजेंट्स ऑफ़ इश्क़ और ऑक्सफेम संस्था ने 'सॉरी थैंक्यू टाटा बाई बाई' नाम का गाना रिलीज़ किया है https://youtu.be/9ZdNbkcqR-0. इस मज़ेदार गाने में लड़कियां समाज और सरकार के पितृसत्तात्मक नज़रिये पर सीधा सीधा तीर मारा है - अगर लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ानी है तो हेल्लो हम महिलाओं से बात तो करो ! गाने के बोल नारीवादी और समझदार है और धुन ऐसा कि कोई एक बार सुनले तो गुनगुनादे !
यह कैंपेन महिला हिंसा के खिलाफ 16 डेज ऑफ़ एक्टिविज्म के वैश्विक अभियान का हिस्सा है.
मुझे यह वीडियो देखकर बहुत मज़ा आया. गाना भले ही हल्का और हंसी भरा हो लेकिन गीत में बातें साफ़ और मुंहफट है - औरतों की राय लिए बिना आप क्या पालिसी क्या सरकार क्या विकास लाओगे? गाने में पुरुषों का जो चित्र सामने आता है ऐसे कितने लोगों को हम नहीं जानते? जो महिलाओं को अपनी आवाज़ उठाने के लिए कोई जगह नहीं देते है, जिनके मानसिकता में अभी भी महिला आज़ादी की बराबर हक़दार नहीं है! लेकिन इस वीडियो से मेरी शिकायत नहीं एक सवाल है - इस वीडियो के दर्शक कौन है और उन पर इसका क्या असर है?
मैं अपने अनुभव की बात करती हूँ, मेरे इलाक़े बुंदेलखंड की और ग्रामीण दर्शकों की. हाली ही में हमने एक महिला समूह को संविधान दिवस के अवसर पर चित्रकूट जिले के गावों में नुक्कड़ नाटक करते हुए देखा. भेदभाव और लैंगिक गैरबराबरी जैसे मुद्दों को इन रोचक नाटक में उठाया गया. इसे दर्शकों ने काफी एन्जॉय किया लेकिन इस उत्पीड़न को अपने जीवन से नहीं जोड़ा. महिला और पुरुष दोनों नाटक देख हंस लिए लेकिन यह नहीं पहचान पाए की रोज़ाना यह हिंसा उन पर हो रही है या ऐसा जुल्म वो आम तौर पर परिवारों में देखने को मिलता है. मेरे कहने का यह मतलब नहीं है कि ग्रामीण दर्शक में समझ-बूझ नहीं है. लेकिन जो हिंसा और अत्याचार के हर रूप को पहचानते नहीं उनके लिए कहीं न कहीं वीडियो या नाटक हंसी-मज़ाक की सीमा पार नहीं करता.