Integrity Score 400
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Majboori ya majdoori?
चित्रकूट जिले के कर्वी चौराहे पर रोज़ सुबह 8 बजे से लेबर चौक लगती है. जहां महिला और पुरुष मजदूर काम ढूंढ़ने के लिए इक्कठा होते है. लॉकडाउन के खुलने के बाद से लेबर चौक में फिर से भीड़ दिखने लगी है. लेकिन क्या सबको बराबर काम मिल रहा है?
हम देख रहे है कि ज्यादातर पुरुषो को काम मिल रहा है लेकिन महिलाओं को उतना नहीं. जो काम मिल रहा है उसमे भी लिंग के आधार पर अंतर दिख रहा है. जहां पुरुषों को कई तरह के काम मिल रहे है जैसे मिस्त्री का या बेलदार का या फिर भाड़े में सामान ढ़ोने के काम. वहीं महिलाओं को मेहनत का काम मिल रहा है जैसे ईंट पकड़ने का काम, बालू ढ़ोने का काम, मिस्त्री को मसाला देने का काम या पानी भरने का काम.
दिहाड़ी मजदूरी के भुगतान में भी लैंगिक अंतर देखने को मिल रहा है. जहां पुरुष मजदूर प्रति दिन 300-400 रुपये मजदूरी कमा रहे है वहीं महिलाएं 180-200 रुपये मात्र कमा रही है. महिला मजदूरों पर घर के काम का दोहरा बोझ भी है. महिलाओं के लिए दोहरा काम है और बराबर की कमाई भी नहीं है.
कोरोना के तीसरे लहर की बात चल रही है जिसमे मजदूर वर्ग, खासकर महिला मजदूर पर एक बार फिर से आर्थिक मार पड़ेगी. कई रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 20 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे आगए है.